श्री राम चालीसा
दोहा
गणपति चरण सरोज गहि । चरणोदक धरि भाल ।।
लिखौं विमल रामावली । सुमिरि अंजनीलाल ।।
राम चरित वर्णन करौं । रामहिं हृदय मनाई ।।
मदन कदन रत राखि सिर । मन कहँ ताप मिटाई ।।
चौपाई
राम रमापति रघुपति जै जै । महा लोकपति जगपति जै जै ।।
राजित जनक दुलारी जै जै । महिनन्दिनी प्रभु प्यारी जै जै ।।
रातिहुं दिवस राम धुन जाहीं । मगन रहत मन तन दुख नाहीं ।।
राम सनेह जासु उर होई । महा भाग्यशाली नर सोई ।।
राक्षस दल संहारी जै जै । महा पतित तनु तारी जै जै ।।
राम नाम जो निशदिन गावत । मन वांछित फल निश्चय पावत ।।
रामयुधसर जेहिं कर साजत । मन मनोज लखि कोटिहुं लाजत ।।
राखहु लाज हमारी जै जै । महिमा अगम तुम्हारी जै जै ।।
राजीव नयन मुनिन मन मोहै । मुकुट मनोहर सिर पर सोहै ।।
राजित मृदुल गात शुचि आनन । मकराकृत कुण्डल दुहुँ कानन ।।
रामचन्द्र सर्वोत्तम जै जै । मर्यादा पुरुषोत्तम जै जै ।।
राम नाम गुण अगन अनन्ता । मनन करत शारद श्रुति सन्ता ।।
राति दिवस ध्यावहु मन रामा । मन रंजन भंजन भव दामा ।।
राज भवन संग में नहीं जैहें । मन के ही मन में रहि जैहें ।।
रामहिं नाम अन्त सुख दैहें । मन गढ़न्त गप काम न ऐहें ।।
राम कहानी रामहिं सुनिहें । महिमा राम तबै मन गुनिहें ।।
रामहि महँ जो नित चित राखिहें । मधुकर सरिस मधुर रस चाखिहें ।।
राग रंग कहुँ कीर्तन ठानिहें । मम्ता त्यागि एक रस जानिहें ।।
.राम कृपा तिन्हीं पर होईहें । मन वांछित फल अभिमत पैहें ।।
राक्षस दमन कियो जो क्षण में । महा बह्नि बनि विचर्यो वन में ।।
रावणादि हति गति दै दिन्हों । महिरावणहिं सियहित वध कीन्हों ।।
राम बाण सुत सुरसरिधारा । महापातकिहुँ गति दै डारा ।।
राम रमित जग अमित अनन्ता । महिमा कहि न सकहिं श्रुति सन्ता ।।
राम नाम जोई देत भुलाई । महा निशा सोइ लेत बुलाई ।।
राम बिना उर होत अंधेरा । मन सोही दुख सहत घनेरा ।।
रामहि आदि अनादि कहावत । महाव्रती शंकर गुण गावत ।।
राम नाम लोहि ब्रह्म अपारा । महिकर भार शेष सिर धारा ।।
राखि राम हिय शम्भु सुजाना । महा घोर विष किन्ह्यो पाना ।।
रामहि महि लखि लेख महेशु । महा पूज्य करि दियो गणेशु ।।
राम रमित रस घटित भक्त्ति घट । मन के भजतहिं खुलत प्रेम पट ।।
राजित राम जिनहिं उर अन्तर । महावीर सम भक्त्त निरन्तर ।।
रामहि लेवत एक सहारा । महासिन्धु कपि कीन्हेसि पारा ।।
राम नाम रसना रस शोभा । मर्दन काम क्रोध मद लोभा ।।
राम चरित भजि भयो सुज्ञाता । महादेव मुक्त्ति के दाता ।।
रामहि जपत मिटत भव शूला । राममंत्र यह मंगलमूला ।।
राम नाम जपि जो न सुधारा । मन पिशाच सो निपट गंवारा ।।
राम की महिमा कहँ लग गाऊँ । मति मलिन मन पार न पाऊँ ।।
रामावली उस लिखि चालीसा । मति अनुसार ध्यान गौरीसा ।।
रामहि सुन्दर रचि रस पागा । मठ दुर्वासा निकट प्रयागा ।।
रामभक्त्त यहि जो नित ध्यावहिं । मनवांछित फल निश्चय पावहिं ।।
दोहा
राम नाम नित भजहु मन । रातिहुँ दिन चित लाई ।।
मम्ता मत्सर मलिनता । मनस्ताप मिटि जाई ।।
राम का तिथि बुध रोहिणी । रामावली किया भास ।।
मान सहस्त्र भजु दृग समेत । मगसर सुन्दरदास ।।
श्री राम चालीसा
॥चौपाई॥
श्री रघुवीर भक्त हितकारी। सुन लीजै प्रभु अरज हमारी॥
निशिदिन ध्यान धरै जो कोई। ता सम भक्त और नहिं होई॥
ध्यान धरे शिवजी मन माहीं। ब्रह्म इन्द्र पार नहिं पाहीं॥
दूत तुम्हार वीर हनुमाना। जासु प्रभाव तिहूं पुर जाना॥
तब भुज दण्ड प्रचण्ड कृपाला। रावण मारि सुरन प्रतिपाला॥
तुम अनाथ के नाथ गुंसाई। दीनन के हो सदा सहाई॥
ब्रह्मादिक तव पारन पावैं। सदा ईश तुम्हरो यश गावैं॥
चारिउ वेद भरत हैं साखी। तुम भक्तन की लज्जा राखीं॥
गुण गावत शारद मन माहीं। सुरपति ताको पार न पाहीं॥
नाम तुम्हार लेत जो कोई। ता सम धन्य और नहिं होई॥
राम नाम है अपरम्पारा। चारिहु वेदन जाहि पुकारा॥
गणपति नाम तुम्हारो लीन्हो। तिनको प्रथम पूज्य तुम कीन्हो॥
शेष रटत नित नाम तुम्हारा। महि को भार शीश पर धारा॥
फूल समान रहत सो भारा। पाव न कोऊ तुम्हरो पारा॥
भरत नाम तुम्हरो उर धारो। तासों कबहुं न रण में हारो॥
नाम शक्षुहन हृदय प्रकाशा। सुमिरत होत शत्रु कर नाशा॥
लखन तुम्हारे आज्ञाकारी। सदा करत सन्तन रखवारी॥
ताते रण जीते नहिं कोई। युद्घ जुरे यमहूं किन होई॥
महालक्ष्मी धर अवतारा। सब विधि करत पाप को छारा॥
सीता राम पुनीता गायो। भुवनेश्वरी प्रभाव दिखायो॥
घट सों प्रकट भई सो आई। जाको देखत चन्द्र लजाई॥
सो तुमरे नित पांव पलोटत। नवो निद्घि चरणन में लोटत॥
सिद्घि अठारह मंगलकारी। सो तुम पर जावै बलिहारी॥
औरहु जो अनेक प्रभुताई। सो सीतापति तुमहिं बनाई॥
इच्छा ते कोटिन संसारा। रचत न लागत पल की बारा॥
जो तुम्हे चरणन चित लावै। ताकी मुक्ति अवसि हो जावै॥
जय जय जय प्रभु ज्योति स्वरूपा। नर्गुण ब्रह्म अखण्ड अनूपा॥
सत्य सत्य जय सत्यव्रत स्वामी। सत्य सनातन अन्तर्यामी॥
सत्य भजन तुम्हरो जो गावै। सो निश्चय चारों फल पावै॥
सत्य शपथ गौरीपति कीन्हीं। तुमने भक्तिहिं सब विधि दीन्हीं॥
सुनहु राम तुम तात हमारे। तुमहिं भरत कुल पूज्य प्रचारे॥
तुमहिं देव कुल देव हमारे। तुम गुरु देव प्राण के प्यारे॥
जो कुछ हो सो तुम ही राजा। जय जय जय प्रभु राखो लाजा॥
राम आत्मा पोषण हारे। जय जय दशरथ राज दुलारे॥
ज्ञान हृदय दो ज्ञान स्वरूपा। नमो नमो जय जगपति भूपा॥
धन्य धन्य तुम धन्य प्रतापा। नाम तुम्हार हरत संतापा॥
सत्य शुद्घ देवन मुख गाया। बजी दुन्दुभी शंख बजाया॥
सत्य सत्य तुम सत्य सनातन। तुम ही हो हमरे तन मन धन॥
याको पाठ करे जो कोई। ज्ञान प्रकट ताके उर होई॥
आवागमन मिटै तिहि केरा। सत्य वचन माने शिर मेरा॥
और आस मन में जो होई। मनवांछित फल पावे सोई॥
तीनहुं काल ध्यान जो ल्यावै। तुलसी दल अरु फूल चढ़ावै॥
साग पत्र सो भोग लगावै। सो नर सकल सिद्घता पावै॥
अन्त समय रघुबरपुर जाई। जहां जन्म हरि भक्त कहाई॥
श्री हरिदास कहै अरु गावै। सो बैकुण्ठ धाम को पावै॥
॥ दोहा॥
सात दिवस जो नेम कर, पाठ करे चित लाय।
हरिदास हरि कृपा से, अवसि भक्ति को पाय॥
राम चालीसा जो पढ़े, राम चरण चित लाय।
जो इच्छा मन में करै, सकल सिद्घ हो जाय॥
।।इतिश्री प्रभु श्रीराम चालीसा समाप्त:।।
श्री राम देव चालीसा
।। दोहा ।।
जय जय जय प्रभु रामदे, नमो नमो हरबार।
लाज रखो तुम नन्द की, हरो पाप का भार।
दीन बन्धु किरपा करो, मोर हरो संताप।
स्वामी तीनो लोक के, हरो क्लेश, अरू पाप।
।। चैपाई ।।
जय जय रामदेव जयकारी। विपद हरो तुम आन हमारी।।
तुम हो सुख सम्पति के दाता। भक्त जनो के भाग्य विधाता।।
बाल रूप अजमल के धारा। बन कर पुत्र सभी दुख टारा।।
दुखियों के तुम हो रखवारे। लागत आप उन्हीं को प्यारे।।
आपहि रामदेव प्रभु स्वामी। घट घट के तुम अन्तरयामी।।
तुम हो भक्तों के भयहारी। मेरी भी सुध लो अवतारी।।
जग में नाम तुम्हारा भारी। भजते घर घर सब नर नारी।।
दुःख भंजन है नाम तुम्हारा। जानत आज सकल संसारा।।
सुन्दर धाम रूणिचा स्वामी। तुम हो जग के अन्तरयामी।।
कलियुग में प्रभु आप पधारे। अंश एक पर नाम है न्यारे।।
तुम हो भक्त जनों के रक्षक। पापी दुष्ट जनों के भक्षक।।
सोहे हाथ आपके भाला। गल में सोहे सुन्दर माला।।
आप सुशोभित अश्व सवारी। करो कृपा मुझ पर अवतारी।।
नाम तुम्हारा ज्ञान प्रकाशे। पाप अविधा सब दुख नाशे।।
तुम भक्तों के भक्त तुम्हारे। नित्य बसो प्रभु हिये हमारे।।
लीला अपरम्पार तुम्हारी। सुख दाता भय भंजन हारी।।
निर्बुद्धी भी बुद्धी पावे। रोगी रोग बिना हो जावे।।
पुत्र हीन सुसन्तति पावे। सुयश ज्ञान करि मोद मनावे।।
दुर्जन दुष्ट निकट नही आवे। भूत पिशाच सभी डर जावे।।
जो काई पुत्रहीन नर ध्यावे। निश्चय ही नर वो सुत पावे।।
तुम ने डुबत नाव उबारी। नमक किया मिसरी को सारी।।
पीरों को परचा तुम दिना। नींर सरोवर खारा किना।।
तुमने पत्र दिया दलजी को।ज्ञान दिया तुमने हरजी को।।
सुगना का दुख तुम हर लीना। पुत्र मरा सरजीवन किना।।
जो कोई तमको सुमरन करते। उनके हित पग आगे धरते।।
जो कोई टेर लगाता तेरी। करते आप तनिक ना देरी।।
विविध रूप धर भैरव मारा। जांभा को परचा दे डारा।।
जो कोई शरण आपकी आवे। मन इच्छा पुरण हो जावे।।
नयनहीन के तुम रखवारे। काढ़ी पुगंल के दुख टारे।।
नित्य पढ़े चालीसा कोई। सुख सम्पति वाके घर होई।।
जो कोई भक्ति भाव से ध्याते। मन वाछिंत फल वो नर पाते।।
मैं भी सेवक हुं प्रभु तेरा। काटो जन्म मरण का फेरा।।
जय जय हो प्रभु लीला तेरी । पार करो तुम नैया मेरी।।
करता नन्द विनय विनय प्रभु तेरी। करहु नाथ तुम मम उर डेरी
।। दोहा।।
भक्त समझ किरपा करी नाथ पधारे दौड़।
विनती है प्रभु आपसे नन्द करे कर जोड़।
यह चालीसा नित्य उठ पाठ करे जो कोय।
सब वाछिंत फल पाये वो सुख सम्पति घर होय।
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